सबद-65

योगी प्रकरण

जोगिया फिरि गयो नग्र मंझारी, जाय समान पाँच जहं नारी।

गये देसंतर कोई न बतावै, जोगिया उलटि गुफा नहिं आवै।।

जरि गयो कंथा धजा गइ टूटी, भजि गयो डंड खपर गयो फूटी।

कहैं कबीर ये कलि है खोटी, जो रहे करवा सो निकरै टोंटी।।

सबद-66

योगी प्रकरण

जोगिया के नग्र बसो मति कोई, जो रे बसे सो जोगिया होई।।

ये जोगिया को उल्टा ग्यान, काला चोला नहिं वाके म्यान।

प्रगट सो कंथा गुप्ता धारी, तामें मूल सजीवन भारी।।

वो जोगिया की जुक्ति जो बूझै, राम रमै तेहि त्रिभुवन सूझै।

अम्रित बेली छिन-छिन पीवै, कहैं कबीर जोगी जुग-जुग जीवै।।

सबद-67

योगी प्रकरण

जो पै बीजरूप भगवान, तो पंडित का पूछो आन।

कंह मन कहं बुधि कहं हंकार, सत रज तम गुण तीन प्रकार।।

विख अम्रित फल फले अनेका, बौधा वेद कहै तरबे का।

कहैं कबीर तैं मैं का जान, को धौं छूटल को अरुझान।।


सबद-68

ईश्वर अविनाषी प्रकरण

जो चरखा जरि जाय बढै़या ना मरै।

मै कातूं सूत हजार, चरखुला ना जरै।।

बाबा मोरे ब्याह कराव, आछा बरहिं तकाव।

जौ लौं आछा बर ना मिलै, तौ लौं तूहि बियाह।।

प्रथमै नग्र पहुंचते, परिगौ सोग संताप।

एक अचंभौ हम देखिया, जो बिटिआ ब्याही बाप।।

समधी के घर लमधी आये, आये बहू के भाय।

गोड़े चूल्हा दै दै, चरखा दियो दिढ़ाय।।

देव लोक मरि जाहिगे, एक न मरै बढ़ाय।

यह मन रंजन कारने, चरखा दियो दि़ढ़ाय।।

कहैं कबीर सुनो हो संतो, चरखा लखै जो कोय।

जो यह चरखा लखि परे, ताको आवागौन न होय।।


सबद-69

ईश्वर अनाहत प्रकरण

जंत्री जंत्र अनूपम बाजे, वाके अस्ट गगन मुख गाजै।।

तूहीं गाजै तूहीं बाजैं, तूहीं लिये कर डोलै।

एक शब्द मा राग छतीसों, अनहद बानी बोलै।

मुख के नाल स्रवन के तुम्बा, सतगुर साज बनाया।

जिभ्या के तार नासिका चरई, माया को मोम लगाया।।

गगन मंडल में भया उजियारा, उलटा फेर लगाया।

कहैं कबीर जन भये विवेकी, जिन्ह जंत्री सो मन लाया।।


सबद-70

कृत्रिम मूर्ति पूजा और मांस भक्षण प्रकरण

जस मांसु पसु की तस मांसु नर की, रिधुर-रिधुर एक सारा जी।

पसु के मांस भखैं सब कोई, नरहिं न भखै सियारा जी।।

ब्रह्म  कुलाल मेदिनी भइया, उपजि बिनसि कित गइया जी।

मांसु मछरिया तै पै खइया, जेंव खेतन मों बोइया जी।।

माटी के करि देवी देवा, काटि-काटि जिउ देइया जी।

जो तोहरा है सांचा देवा, खेत चरत क्यों न लेइया जी।।

कहैं कबीर सुनो हो संतो, राम नाम नित लेइया जी।

जो कछु कियेउ जिभ्या के स्वारथ, बदल पराये देइया जी।।


सबद-71

व्यापक तत्व प्रकरण

चात्रिक काह पुकार दूरी, सो जल जगत रहा भरिपूरी।

जेहि जल नाद बिंद की भेदा, खट क्रम सहित उपाने बेदा।।

से जल जीउ सीऊ को बासा, सो जल धरनी अमर प्रगासा।

जेहि जल उपजल सकल शरीरा, सो जल भेद न जानु कबीरा।।


सबद-72

आसुरीभाव प्रकरण

चलहु का टेढ़ो टेढ़ो टेढ़ो।

दसहूँ द्वार नरक भरि बूड़े, तू गंधी को बेरो।।

फूटे नैन हृदै नहिं सूझे, मति एकउ नहिं जानी।

काम क्रोध त्रिस्ना के माते, बूडि़ मुये बिनु पानी।।

जो जारे तन होय भस्म धुरि, गांडे क्रिम-किट खाई।

सीकर स्वान काग के भोजन, तन की एहि बड़ाई।

चेति न देखु मुगुध नर बउरे, तुमसे काल न दूरी।

कोटिन जतन करो यह तन की, अंत अवस्था धूरी।।

बालू के घरवा में बैठे रहो है, चेतत नहीं अयाना।

कहैं कबीर एक राम भजे बिनु, बूड़े बहुत सियाना।।