सबद-69
ईश्वर अनाहत प्रकरण
जंत्री जंत्र अनूपम बाजे, वाके अस्ट गगन मुख गाजै।।
तूहीं गाजै तूहीं बाजैं, तूहीं लिये कर डोलै।
एक शब्द मा राग छतीसों, अनहद बानी बोलै।
मुख के नाल स्रवन के तुम्बा, सतगुर साज बनाया।
जिभ्या के तार नासिका चरई, माया को मोम लगाया।।
गगन मंडल में भया उजियारा, उलटा फेर लगाया।
कहैं कबीर जन भये विवेकी, जिन्ह जंत्री सो मन लाया।।
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