सबद-72
आसुरीभाव प्रकरण
चलहु का टेढ़ो टेढ़ो टेढ़ो।
दसहूँ द्वार नरक भरि बूड़े, तू गंधी को बेरो।।
फूटे नैन हृदै नहिं सूझे, मति एकउ नहिं जानी।
काम क्रोध त्रिस्ना के माते, बूडि़ मुये बिनु पानी।।
जो जारे तन होय भस्म धुरि, गांडे क्रिम-किट खाई।
सीकर स्वान काग के भोजन, तन की एहि बड़ाई।
चेति न देखु मुगुध नर बउरे, तुमसे काल न दूरी।
कोटिन जतन करो यह तन की, अंत अवस्था धूरी।।
बालू के घरवा में बैठे रहो है, चेतत नहीं अयाना।
कहैं कबीर एक राम भजे बिनु, बूड़े बहुत सियाना।।
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