सबद-68

ईश्वर अविनाषी प्रकरण

जो चरखा जरि जाय बढै़या ना मरै।

मै कातूं सूत हजार, चरखुला ना जरै।।

बाबा मोरे ब्याह कराव, आछा बरहिं तकाव।

जौ लौं आछा बर ना मिलै, तौ लौं तूहि बियाह।।

प्रथमै नग्र पहुंचते, परिगौ सोग संताप।

एक अचंभौ हम देखिया, जो बिटिआ ब्याही बाप।।

समधी के घर लमधी आये, आये बहू के भाय।

गोड़े चूल्हा दै दै, चरखा दियो दिढ़ाय।।

देव लोक मरि जाहिगे, एक न मरै बढ़ाय।

यह मन रंजन कारने, चरखा दियो दि़ढ़ाय।।

कहैं कबीर सुनो हो संतो, चरखा लखै जो कोय।

जो यह चरखा लखि परे, ताको आवागौन न होय।।

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