सबद-70

कृत्रिम मूर्ति पूजा और मांस भक्षण प्रकरण

जस मांसु पसु की तस मांसु नर की, रिधुर-रिधुर एक सारा जी।

पसु के मांस भखैं सब कोई, नरहिं न भखै सियारा जी।।

ब्रह्म  कुलाल मेदिनी भइया, उपजि बिनसि कित गइया जी।

मांसु मछरिया तै पै खइया, जेंव खेतन मों बोइया जी।।

माटी के करि देवी देवा, काटि-काटि जिउ देइया जी।

जो तोहरा है सांचा देवा, खेत चरत क्यों न लेइया जी।।

कहैं कबीर सुनो हो संतो, राम नाम नित लेइया जी।

जो कछु कियेउ जिभ्या के स्वारथ, बदल पराये देइया जी।।

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