सबद-41

प्रलाप प्रकरण

पंडित देखहु मन मंह जानी।
कहूँ दऊॅं छूति कहाँ सौं उपजी, तबहि छूति तुम मानी।।
नादे विदे रिधुर के संगे, घटहीं मा घट सवचै।
अस्ट कॅंवल ह्वै पुहुमी आया, छूति कहाॅं ते उपजै।।
लख चउरासि नाना बासन, सो सभ सरि भौ माटी।
एकै पाट सकल बैठाये, छूति लेत दऊॅं काकी।।
छूतिहिं जेवन छूतिहिं अंचवन, छूतिहिं जगत उपाया।
कहैं कबीर ते छूति विवरजित, जाके संग न माया।।


सबद-42

पंडितवाद प्रश्न प्रकरण

पंडित सोधि कहो समुझाई, जाते आवागमन नसाई।
अरथ धरम अउ काम मोक्ष कहु, कउन दिसा बसे भाई।।
उत्तर कि दखिन पूरब कि पछिम, सरग पताल कि मांही।
बिना गोपाल ठउर नहि कतहॅू, नरक जात दऊॅं काहैं।।
अनजाने को सरग नरक है, हरि जाने को नाहीं।।
जेहि डर से सभलोग डरतु हैं, सो डर हमरे नाहीं।।
पाप पुन्नि की संका नाहीं, सरग नरक नहि जाहीं।।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, जहां का पद तहाँ समाहीं।।


सबद-43

पंडितवाद प्रष्न प्रकरण

पंडित मिथ्या करहु विचारा, न वहां श्रृष्टि न सिरजनहारा।।
थूल अस्थूल पौन नहिं पावक, रवि ससि धरनि न नीरा।
जोति सरूप काल नहिं जहवां, वचन न आहिं सरीरा।।
करम धरम किछवो नहि उहवां, न वहां मंत्र न पूजा।
संजम सहित भवा नहिं जहवां, सो धौं एक कि दूजा।।
गोरख राम एकउ नहिं उहवां, न वहां बेद बिचारा।
हरि हर ब्रम्हा नहि सिव सक्ती, तिरथउ नाहि अचारा।।
माय बाप गुर जहवां नाहीं, सो धौं दूजा कि अकेला।
कहहि कबीर जो अबकी बूझै, सोई गुरु हम चेला।।

सबद-44

माया प्रावल्य प्रकरण

बुझ-बुझ पंडित करहु बिचारा, पुरखा है की नारी।।
बाभन के घर बाभनि होती, जोगी के घर चेली।।
कलमा पढि़-पढि़ भई तुरकनी, कलि मा रहत अकेली।।
बर नहिं बरै ब्याह नहि करै, पूत जनमावनि हारी।।
कारे मूड़ को एकहु न छाड़े, अजहूँ आदि कुंवारी।।
मैके रहे जाय नहि ससुरे, सांई संग न सोवै।
कहैं कबीर ते जुग-जुग जीवे, जो जाति-पांति कुल खोवै।।

सबद-45

नाम रूप अभाव प्रकरण

को न मुआ कहो पंडित जना, सो समुझाय कहौ मोहि सना।।
मुये ब्रहा्रा विस्नु महेसा, पारबती सुत मुये गनेसा।
मुये चन्द मुये रवि सेसा , मुये हनिमंत जिन्ह बाँधल सेता।।
मुये क्रिस्न मुये करतारा, एक न मुआ जो सिरजनहारा।
कहैं कबीर मुआ नहिं सोई, जाको आवागमन न होइ।।

सबद-46

अकर्म प्रकरण

पंडित एक अचरज बड़ होई।
एक मरि मुअै अन्न नहिं खाये, एक मरे सीझे रसोई।।
करि अस्नान देवन की पूजा, नउ गुन कांध जनेऊ।
हडि़आ हाड़-हाड़ थारी मुख, अब खट करम बनेऊ।।
धरम करै जहाँ जीउ बधतु है, अकरम करे मोरे भाई।
जे तोहरा को बाभन कहिये, तो काको कहिये कसाई।।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, भरम भूलि दुनियाई।
अपरमपार पार परसोतिम, या गति बिरले पाई।।

सबद-47

अकर्म प्रकरण

पांडे बूझि पियहु तुम पानी।
जेहि मटिया के घर मां बैठे, तामे श्रृष्टि समानी।।
छप्पन कोटि जादौ जहं भीजैं, मुनिजन सहस अठासी।।
पैग-पैग पैगम्बर गाड़े, सो सभ सरि भौ मांटी।।
मच्छ कच्छ घरिआर बिआने, रिधुर नीर जल भरिया।।
नदिया नीर नरक बहि आवै, पसु मानुख सभ सरिया।।
हाड़ झरी झरि गूद गली गलि, दूध कहां से आया।।
सो ले पांडे जेंवन बैठे, मटियहि छूति लगाया।।
बेद कितेब छांड़ी देउ पांडे, ई सभ मन के भरमा।।
कहैं कबीर सुनो हो पांडे, ई सभ तोहरे करमा।।

सबद-48

संज्ञा विहीन आत्मतत्व प्रकरण

पंडित देखहु हृदय विचारी, को पुरखा को नारी।।
सहज समाना घट-घट बोले, वाके चरित अनूपा।।
वाको नाम काह कहि लीजै, ना वाके वरन न रूपा।।
तैं मैं का करसी नर बौरे, का मेरा का तेरा।।
राम खोदाय सकति सिउ एकै, कहु धौं कवन निहोरा।।
वेद पुरान कितेब कुराना, नाना भांति बखाना।।
हिन्दू तुरक जैनि अउ जोगी, ये कलि काउ न जाना।।
छउ दरसन मा जो परवाना, तासु नाम मनमाना।
कहैं कबीर हमहीं पै बौरे, ई सभ खलक सिआना।।


सबद-49

संज्ञा विहीन आत्मतत्व प्रकरण

बुझ-बुझ पंडित पद निरबान, सांझ परे कहवां बसे भान।
ऊंच नीच परबत ढेला न ईट, बिनु गायन तहवां उठे गीत।।
ओस न प्यास मंदिल नहिं जहवां, धेनु दुहावैं तहवां।
निते अमावस नित संक्रांती, नित-नित नउग्रह बैठे पांती।।
मैं तोहिं पूछौं पंडित जना, ह्रिदया ग्रहन लागु केहि खना।
कहैं कबीर एतनो नहिं जान, कवन सबद गुर लागा कान।।

सबद-50

संसार वृक्ष प्रकरण

बुझ-बुझ पंडित बिरवा न होय, आधे बसे पुरुख आधे बसे जोय।।
बिरवा एक सकल संसारा, सरग सीस जर गई पतारा।
बारह पखुरिया चैबिस पात, घने बरोह लागे चहुँ पास।।
फूलै न फलै वाकी है बानी, रैनि दिवस बिकार चुवै पानी।
कहैं कबीर कछु अछलो न तहिया, हरि बिरवा प्रतिपालिनि जाहिया।।

सबद-51

कुण्डलिनी योग प्रकरण

बुझ-बुझ पंडित मन चित लाय, कबहूँ भरलि बहै कबहूँ सुखाय।।
खन ऊबै खन डूबै खन औगाह, रतन न मिलै पावैं नहि थाह।
नदिया नहि सांसरि बहै नीर, मच्छ न मरै केवट रहै तीर।।
पोहकर नहिं बांधल तहं घाट, पुरइनि नाहिं कंवल महॅं बाट।
कहहिं कबीर ई मन का धोख, बैठा रहै चलन चहै चोख।।


सबद-52

अन्योक्ति योग प्रकरण

बूझि लीजै ब्रह्म ग्यानी।
धुरि-धुरि बरसा बरसावै, परिया बुंद न पानी।।
चिउंटी के पग हस्ती बांधो, छेरी बीगर खावै।
उदधि मांह ते निकरि छांछरी, चैरे ग्रेह करावै।।
मेढुक सरप रहत एक संगे, बिलैया स्वान बियाई।
नित उठि सिंघ सियार सों डरपै, अद्बुद कथो न जाई।।
कौने ससा म्रिगा बन घेरे, पारथ बानन मेलै।
उदधि भूप ते तरिवर डाहै, मच्छ अहेरा खेलै।।
कहैं कबीर यह अद्बुद ग्याना, को यहि ग्यानहिं बूझै।
बिनु पंखी उडि़ जाय अकासै, जीवहिं मरन न सूझै।।


सबद-53

परमात्मारूपी वृक्ष प्रकरण

वै बिरबा चीन्है जो कोय। जरा मरन रहित तन होय।।
बिरबा एक सकल संसारा। पेड़ एक फूटल तीनि डारा।।
मध्य कि डारि चारि फल लागा। साखा पत्र गिनै को वाका।।
बेलि एक त्रिभुवन लपटानी। बांधे ते छूटै नहि ग्यानी।।
कहैं कबीर हम जात पुकारा। पण्डित होय सो लेइ विचारा।।


सबद-54

अन्योक्तिसहित सत्यानन्द प्रकरण

सांई के संग सासुर आई।
संघ न सूती स्वाद नहिं मानी, गयो जोवन सपने की नांई।।
जना चारि मिल लगन सोधाये, जना पाँच मिलि माड़ो छाये।
सखी सहेलरि मंगल गावै, दुख सुख मांथे हरदि चढा़वैं।।
नाना रूप परी मन भांवरि, गांठि जोरि भाई पतियाई।
अरघा दे-दे चले सोहागिन, चैके रांड भई संग सांई।।
भयो विवाह चली बिनु दुलहा, बाट जात समधी समुझाई।
कहैं कबीर हम गौने जैबे, तरब कंथ ले तूर बजैबे।।


सबद-55

अन्योक्ति वंचक प्रकरण

नर को ढ़ाढ़स देखो आई, किछु अकथ कथा है भाई।।
सिंघ साहदुल एक हर जोतिन, सीकस बोइन धाने।
बन की भुलुईया चाखुर फेरे, छागर भये किसाने।।
छेरी बाधै ब्याह होत है, मंगल गावै गाई।
बन के रोझ धरि दायज दीन्हों, गोह लुकंदे जाई।।
कागा कापर धोवन लागे, बकुला कीरपै दांते।
मांखी मूंड़ मुडावन लागी, हमहुं जाब बराते।।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, जो यह पद अरथावै।
सोई पंडित सोई ग्याता, सोई भगत कहावै।।


सबद-56

अन्योक्ति वंचक प्रकरण

नर को नहिं परतीत हमारी।
झूठा बनिज कियो झूठे सों, पूँजी सभन मिलि हारी।।
खट दरसन मिलि पन्थ चलायो, तिरदेवा अधिकारी।
राजा देस बड़ो परपंची, रैयत रहत उजारी।।
इतते ऊत ऊतते इत रहु, जम की साट सवारी।
ज्यौं कपिडोर बांधि बाजीगर, अपनी खुसी परारी।।
इहै पेड़ उतपति परलै का, बिखया सभै बिकारी।
जैसे स्वान अपावन राजी, त्यों लागी संसारी।।
कहैं कबीर यह अदबुद ग्याना, को माने बात हमारी।
अजहूँ लेऊॅं छुड़ाय काल सो, जो करे सुरति संभारी।।


सबद-57

कुअभ्यास प्रकरण

ना हरि भजेसि न आदत छूटी।
सबदहिं समुझि सुधारत नाहीं, आंधर भये हियहुं की फूटी।।
पानी मांहि पखान की रेखा, ठोंकत उठे भभूका।
सहस घड़ा नित उठि जल ढ़ारै, फिर सूखे का सूखा।।
सेतहिं सेत सितंग भौ, सैन बाढु अधिकाई।।
जो सनिपात रोगिअन मारै, सो साधुन सिधि पाई।।
अनहद कहत-कहत जग बिनसै, अनहद श्रृष्टि समानी।
निकट पयाना जमपुर धावै, बोलै एकै बानी।।
सतगुरु मिलै बहुत सुख लहिये, सतगुरु सबद सुधारे।
कहैं कबीर ते सदा सुखी है, जो यह पदहिं विचारै।।


सबद-58

कुअभ्यास प्रकरण

नरहरि लागि धौं बिकार, बिनु इंधन मिले न बुझावनहार।
मै जानौं तोहीं से ब्यापै, जरत सकल संसार।।
पानी मांहि अगिन कौ अंकुल, जरत बुझावै पानी।
एक न जरै-जरै नउ नारी, जुगुति न काहू जानी।।
सहर जरै पहरू सुख सोवै, कहै कुसल घर मेरा।
पुरिया जरै वस्तु निज उबरै, विकल राम रंग तेरा।।
कुबजा पुरुख गले एक लागा, पूजिन मन के साधा।
करत विचार जनम गौ खीसै, ई तन रहत असाधा।।
जानि बूझि जो कपट करतु हैं, तेहि अस मंद न कोई।
कहैं कबीर सब नारि राम की, हमते और न होई।।


सबद-59

माया प्रकरण

माया महा ठगिनि हम जानी।
तिरगुन फांस लिये कर डोलै, बोलै मधुरी बानी।।
केसव के कंवला ह्वै बैठी, सिव के भौन भवानी।
पंडा के मूरति होय बैठी, तीरथहॅूं में पानी।।
जोगी के जोगिनि होय बैठी, राजा के घर रानी।
काहू के हीरा होय बैठी, काहु के कौड़ी कानी।।
भग्ता के भग्तिन होय बैठी, ब्रह्मा के ब्रह्मानी ।।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, ई सभ अकथ कहानी।।


सबद-60

माया प्रकरण

माया मोह मोहित कीन्हा, ताते ग्यान रतन हरि लीन्हा।।
जीवन ऐसो सपना जैसो, जीवन सपन समाना।
सब्द गुरू उपदेस दीन्हों, तैं छांडहू परम निधाना।।
जोति देखि पतंग हुलसै, पसू न पेखै आगी।
काल फांस नर मुगुध न चेतै, कनक कामिनी लागी।।
सेख सैयद कितेब निरखें, सुम्रिति सास्त्र विचार।
सतगुर के उपदेस बिना तैं, जानि के जिव मार ।।
करु विचार विकार परिहर, तरन तारन सोय।
कहैं कबीर भगवंत भजु नर, दुतिया और न कोय।।


सबद-61

माया प्रकरण

मरिहो रे तन का लै करिहो, प्रान छुटे बाहर ले डारिहो।
काया बिगुर्चन अनवनिभाँती, कोइ जारै कोइ गाड़ै मांटी।।
हिन्दू ले जारैं तुरक लै गाड़ैं, यहि विधि अंत दुनो घर छाड़ें।
कर्म फांस जम जाल पसारा, जस धीमर मछरी गहि मारा।।
राम बिना नर होइहो कैसा, बाट मांझ गोबरौरा जैसा।
कहैं कबीर पाछे पछितैहो, या घर से जब वा घर जैहो।।


सबद-62

माया प्रकरण

माई मैं दूनो कुल उजियारी।
बाहर खसम नैहरै खायो, सोरह खायो ससुरारी।।
सासु ननद पटिया मिलि रखलौं, भसुरहिं परलौं गारी।
जारौं मांग मैं तासु नारि की, जिन सरवर रचल धमारी।।
जना पाँच कोखिया मिलि रखलौ, और दूइ अउ चारी।
पार परोसिनि करें कलेवा, संगहि बुधि महतारी।।
सहजे बपुरे सेज बिछावल, सूतलि मैं पांव पसारी।
आवों न जावों मरों नहिं जीवों, साहब मेटल गारी।।
एक नाम मैं निजु कै गहलौं, ते छूटल संसारी।
एक नाम मैं बदिकै लेखौं, कहैं कबीर पुकारी।।


सबद-63
माया प्रकरण
मैं कासों कहौं को सुने को पतियाय। फुलवा के छुवत भंवरा मरि जाय।।
जोतिये न बोइये सींचिये न सोय। बिनु डार पात फूल एक होय।।
गगन मंडल बिच फुल एक फूला। नर भौ डाल ऊपर भौ मूला।।
फूल भल फूलल मालिन भल गांथल। फुलवा बिनसि गौ भंवरा निरासल।।
कहैं कबीर सुनो संतो भाई। पंडित जन फुल रहत लुभाई।।


सबद-64

अध्यात्म अन्योक्ति प्रकरण

जोलहा बीनहु हो हरिनामा, जाके सुर नर मुनि धरें ध्याना।।
ताना तनै को अहुंठा लीन्हा, चरखी चारो वेदा।
सरकुंडी येक राम नरायन, पुरन प्रगटे कामा।।
भौसागर एक कठवत कीन्हा, तामें मांड़ी साना।
मांड़ी का तन मांडि़ रहो है, मांड़ी बिरले जाना।।
चाँद सुरज दुई गोड़ा कीन्हा, मांझा दीप कियो मांझा।
त्रिभुवन नाथ जो मांजन लागे, स्याम मुररिया दीन्हा।।
पाई कै जब भरना लीन्हा, वै बाँधन को रामा।
वै भराये तिहुँ लोकहिं बाँधे, कोई न रहत उबाना।।
तीनि लोक एक करिगह कीन्हा, दिगमग कियो ताना।।
आदि पुरुख बैठावन बैठे, कबीरा जोति समाना।।