सबद-44

माया प्रावल्य प्रकरण

बुझ-बुझ पंडित करहु बिचारा, पुरखा है की नारी।।
बाभन के घर बाभनि होती, जोगी के घर चेली।।
कलमा पढि़-पढि़ भई तुरकनी, कलि मा रहत अकेली।।
बर नहिं बरै ब्याह नहि करै, पूत जनमावनि हारी।।
कारे मूड़ को एकहु न छाड़े, अजहूँ आदि कुंवारी।।
मैके रहे जाय नहि ससुरे, सांई संग न सोवै।
कहैं कबीर ते जुग-जुग जीवे, जो जाति-पांति कुल खोवै।।

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