सबद-43
पंडितवाद प्रष्न प्रकरण
पंडितवाद प्रष्न प्रकरण
पंडित मिथ्या करहु विचारा, न वहां श्रृष्टि न सिरजनहारा।।
थूल अस्थूल पौन नहिं पावक, रवि ससि धरनि न नीरा।
जोति सरूप काल नहिं जहवां, वचन न आहिं सरीरा।।
करम धरम किछवो नहि उहवां, न वहां मंत्र न पूजा।
संजम सहित भवा नहिं जहवां, सो धौं एक कि दूजा।।
गोरख राम एकउ नहिं उहवां, न वहां बेद बिचारा।
हरि हर ब्रम्हा नहि सिव सक्ती, तिरथउ नाहि अचारा।।
माय बाप गुर जहवां नाहीं, सो धौं दूजा कि अकेला।
कहहि कबीर जो अबकी बूझै, सोई गुरु हम चेला।।
No comments:
Post a Comment