सबद-54

अन्योक्तिसहित सत्यानन्द प्रकरण

सांई के संग सासुर आई।
संघ न सूती स्वाद नहिं मानी, गयो जोवन सपने की नांई।।
जना चारि मिल लगन सोधाये, जना पाँच मिलि माड़ो छाये।
सखी सहेलरि मंगल गावै, दुख सुख मांथे हरदि चढा़वैं।।
नाना रूप परी मन भांवरि, गांठि जोरि भाई पतियाई।
अरघा दे-दे चले सोहागिन, चैके रांड भई संग सांई।।
भयो विवाह चली बिनु दुलहा, बाट जात समधी समुझाई।
कहैं कबीर हम गौने जैबे, तरब कंथ ले तूर बजैबे।।

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