सबद-64
अध्यात्म अन्योक्ति प्रकरण
जोलहा बीनहु हो हरिनामा, जाके सुर नर मुनि धरें ध्याना।।
ताना तनै को अहुंठा लीन्हा, चरखी चारो वेदा।
सरकुंडी येक राम नरायन, पुरन प्रगटे कामा।।
भौसागर एक कठवत कीन्हा, तामें मांड़ी साना।
मांड़ी का तन मांडि़ रहो है, मांड़ी बिरले जाना।।
चाँद सुरज दुई गोड़ा कीन्हा, मांझा दीप कियो मांझा।
त्रिभुवन नाथ जो मांजन लागे, स्याम मुररिया दीन्हा।।
पाई कै जब भरना लीन्हा, वै बाँधन को रामा।
वै भराये तिहुँ लोकहिं बाँधे, कोई न रहत उबाना।।
तीनि लोक एक करिगह कीन्हा, दिगमग कियो ताना।।
आदि पुरुख बैठावन बैठे, कबीरा जोति समाना।।
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