सबद-53
परमात्मारूपी वृक्ष प्रकरण
वै बिरबा चीन्है जो कोय। जरा मरन रहित तन होय।।
बिरबा एक सकल संसारा। पेड़ एक फूटल तीनि डारा।।
मध्य कि डारि चारि फल लागा। साखा पत्र गिनै को वाका।।
बेलि एक त्रिभुवन लपटानी। बांधे ते छूटै नहि ग्यानी।।
कहैं कबीर हम जात पुकारा। पण्डित होय सो लेइ विचारा।।
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