सबद-46

अकर्म प्रकरण

पंडित एक अचरज बड़ होई।
एक मरि मुअै अन्न नहिं खाये, एक मरे सीझे रसोई।।
करि अस्नान देवन की पूजा, नउ गुन कांध जनेऊ।
हडि़आ हाड़-हाड़ थारी मुख, अब खट करम बनेऊ।।
धरम करै जहाँ जीउ बधतु है, अकरम करे मोरे भाई।
जे तोहरा को बाभन कहिये, तो काको कहिये कसाई।।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, भरम भूलि दुनियाई।
अपरमपार पार परसोतिम, या गति बिरले पाई।।

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