सबद-48

संज्ञा विहीन आत्मतत्व प्रकरण

पंडित देखहु हृदय विचारी, को पुरखा को नारी।।
सहज समाना घट-घट बोले, वाके चरित अनूपा।।
वाको नाम काह कहि लीजै, ना वाके वरन न रूपा।।
तैं मैं का करसी नर बौरे, का मेरा का तेरा।।
राम खोदाय सकति सिउ एकै, कहु धौं कवन निहोरा।।
वेद पुरान कितेब कुराना, नाना भांति बखाना।।
हिन्दू तुरक जैनि अउ जोगी, ये कलि काउ न जाना।।
छउ दरसन मा जो परवाना, तासु नाम मनमाना।
कहैं कबीर हमहीं पै बौरे, ई सभ खलक सिआना।।

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