सबद-55
अन्योक्ति वंचक प्रकरण
नर को ढ़ाढ़स देखो आई, किछु अकथ कथा है भाई।।
सिंघ साहदुल एक हर जोतिन, सीकस बोइन धाने।
बन की भुलुईया चाखुर फेरे, छागर भये किसाने।।
छेरी बाधै ब्याह होत है, मंगल गावै गाई।
बन के रोझ धरि दायज दीन्हों, गोह लुकंदे जाई।।
कागा कापर धोवन लागे, बकुला कीरपै दांते।
मांखी मूंड़ मुडावन लागी, हमहुं जाब बराते।।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, जो यह पद अरथावै।
सोई पंडित सोई ग्याता, सोई भगत कहावै।।
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