सबद-58

कुअभ्यास प्रकरण

नरहरि लागि धौं बिकार, बिनु इंधन मिले न बुझावनहार।
मै जानौं तोहीं से ब्यापै, जरत सकल संसार।।
पानी मांहि अगिन कौ अंकुल, जरत बुझावै पानी।
एक न जरै-जरै नउ नारी, जुगुति न काहू जानी।।
सहर जरै पहरू सुख सोवै, कहै कुसल घर मेरा।
पुरिया जरै वस्तु निज उबरै, विकल राम रंग तेरा।।
कुबजा पुरुख गले एक लागा, पूजिन मन के साधा।
करत विचार जनम गौ खीसै, ई तन रहत असाधा।।
जानि बूझि जो कपट करतु हैं, तेहि अस मंद न कोई।
कहैं कबीर सब नारि राम की, हमते और न होई।।

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