सबद-51

कुण्डलिनी योग प्रकरण

बुझ-बुझ पंडित मन चित लाय, कबहूँ भरलि बहै कबहूँ सुखाय।।
खन ऊबै खन डूबै खन औगाह, रतन न मिलै पावैं नहि थाह।
नदिया नहि सांसरि बहै नीर, मच्छ न मरै केवट रहै तीर।।
पोहकर नहिं बांधल तहं घाट, पुरइनि नाहिं कंवल महॅं बाट।
कहहिं कबीर ई मन का धोख, बैठा रहै चलन चहै चोख।।

No comments:

Post a Comment