सबद-49
संज्ञा विहीन आत्मतत्व प्रकरण
संज्ञा विहीन आत्मतत्व प्रकरण
बुझ-बुझ पंडित पद निरबान, सांझ परे कहवां बसे भान।
ऊंच नीच परबत ढेला न ईट, बिनु गायन तहवां उठे गीत।।
ओस न प्यास मंदिल नहिं जहवां, धेनु दुहावैं तहवां।
निते अमावस नित संक्रांती, नित-नित नउग्रह बैठे पांती।।
मैं तोहिं पूछौं पंडित जना, ह्रिदया ग्रहन लागु केहि खना।
कहैं कबीर एतनो नहिं जान, कवन सबद गुर लागा कान।।
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