सबद-50
संसार वृक्ष प्रकरण
बुझ-बुझ पंडित बिरवा न होय, आधे बसे पुरुख आधे बसे जोय।।
बिरवा एक सकल संसारा, सरग सीस जर गई पतारा।
बारह पखुरिया चैबिस पात, घने बरोह लागे चहुँ पास।।
फूलै न फलै वाकी है बानी, रैनि दिवस बिकार चुवै पानी।
कहैं कबीर कछु अछलो न तहिया, हरि बिरवा प्रतिपालिनि जाहिया।।
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