सबद-73

आसुरीभाव प्रकरण

फिरहु का फूले फूले फूले।
जब दस मास ऊर्ध मुख होते, सो दिन काहे के भूले।।
जो मांखी सहते नहिं बिहुरे, सोचि-सोचि धन कीन्हा।
मूये पीछे लेहु-लेहु करे सभ, भूत रहनि कस दीन्हा।।
देहरि लौं बर नारि संग है, आगे संग सुहेला।
म्रितक थान लौ संग खटोला, फिर पुनि हंस अकेला।।
जारे देह भसम होइ जाई, गाड़े माटी खाई।।
कांचे कुंभ उदक ज्यों भरिया, तन की इहै बड़ाई।।
राम न रमसि मोह के माते, परेहु काल बस कूँवा ।
कहैं कबीर नर आपु बंधायो, ज्यों नलनी भ्रम सूँवा।।

सबद-74

कुयोगी प्रकरण

ऐसो जोगिया बदकरमी, जाके गगन अकास न धरनी।
हाथ न वाक पांव न वाके, रूप न बाके रेखा।।
बिना हाट हटवाई लावै, करै बेयाई लेखा।
करम न वाके धरम न वाके, जोग न वाके जुगुती।।
सींगी पत्र किछउ नहिं वाके, काहे को मांगै भुगुती।
मैं तोहि जाना तै मोहि जाना, मैं तांहि मांहि समाना।।
उतपति परलै एकहु न होते, तब कहु कवन ब्रह्म को ध्यान।
जोगी आनि येक ठाढ़ कियो है, राम रहा भरपूरी।।
वोखद मूल किछउ नहि वाके, राम सजीवन मूरी।
नटवट वाजा पेखनि पेखै, बाजीगर की बाजी।।
कहैं कबीर सुनो हो सन्तो, भई सो राज बेराजी।

सबद-75

निर्भेद प्रकरण

ऐसो भरम बिगुरचनि भारी।
वेद कितेब दीन अउ दोजख, को पुर्खा को नारी।।
माटी का घट साज बनाया, नादे विंद समाना।
घट बिनसे का नाम धरहुगे, अहमक खोज भुलाना।।
एकै तुचा हाड़ मल मूत्रा, एक रिधुर एक गूदा।
एक बूंद सो सिस्टि रची है, को ब्रह्मन को सूद्रा।।
रजोगुन ब्रह्मा तमोगुन संकर, सतोगुनी हरि होई।
कहैं कबीर राम रमि रहिये, हिन्दू तुरक न कोई।।

सबद-76

भ्रमभेद प्रकरण

आपन पौ आपहिं बिसरयो।
जैसे स्वान कांच मन्दिर मा, भरमिति भूंकि मरयो।।
ज्यों केहरि बपु निरखि कूप जल, प्रतिमा देखि परयो।
वैसेहि गज फटिक सिला मो, दसनन आनि अरयो।।
मरकट मूठि स्वाद नहिं बिछुरै, घर-घर रटत फिरो।
कहैं कबीर नलनी के सुगना, तोंहि कवने पकरो।।


सबद-77

आत्मावल्म्बन प्रकरण

आपन आस कीजै बहुतेरा, काहु न मरम पावल हरिकेरा।
इन्द्री कहां करे विसरामा, सो कहां गये जो कहत होते रामा।।
सो कहां गये जो होत सयाना, होत म्रितुक वहि पदहि समाना।
रामानंद रामरस माते, कहैं कबीर हम कहि-कहि थाके।।


सबद-78

माया संधि दर्शन प्रकरण

अब हम जानिआ हो, हरि बाजी की खेल।
डंक बजाय दिखाय तमासा, बहुरि लेत सकेल।।
हरि बाजी सुर नर मुनि जहंडे़, माया चाटक लाया।
घर में डारि सकल भरमाया, ह्रिदया ग्यान न आया।।
बाजी झूठ बाजीगर सांचा, साधुन की मति यैसी ।
कहैं कबीर जिन जैसी समुझी, ताकी गति भौ तैसी।।

सबद-79

आत्म उद्बोधन प्रकरण

कहहु हो अंबर कासो लागा, चेतन हारा चेतु सुभागा।
अंबर मध्ये दीसै तारा, येक चेता येक चेतवन हारा।।
जो खोजो सो उहवां नाहीं, सो तो आहि अमर पद माहीं।
कहैं कबीर पद बूझै सोई, मुख ह्रदया जाके येकै होई।।

सबद-80

आत्म उद्बोधन प्रकरण

बन्दे करिले आप निबेरा।
आपु जिअत लखु आपु ठौर करु, मुये कहाँ घर तेरा।।
यहि औसर नहि चेते हो रे प्रानी, अन्त कोई नहिं तेरा।
कहैं कबीर सुनो हो सन्तो, कठिन काल का घेरा।।

सबद-81

भक्ति सर्जन प्रकरण

ऊतो रहु ररा ममा की भांति हो, सभ संत उधारन चूनरी।
बालमीक बन बोइया, चुन्हि लीन्हा सुखदेव।।
करम बिनौरा होय रहा, सूत काते जैदेव।
तीनि लोक ताना तनो है, ब्रह्मा विस्नु महेस।।
नाम लेत मुनि हारिया, सुरपति सकल नरेस।
विस्नु जिभ्या गुन गाइया, बिन बस्ती का देस।।
सूने घर का पाहुना, तासों लाइनि हेत।।
चारो वेद कैड़ा किया है, निराकार कियो राछ।।
बिनै कबीरा चूनरी, मैं नहिं बांधल वारि।।

सबद-82

कुण्डलिनी की प्रमुखता प्रकरण

तू यहि विधि समझो लोई, गोरी मुख मंदिल बाजे।।
एक सरगुन खट चक्रहि बेधै, बिना व्रिखव कोल्हू माचै।
ब्रह्महिं पकरि अगिन महं होमै, मच्छ गगन चढि़ गाजै।।
निति अमावस निति ग्रहन होई, राहु ग्रासैं नित दीजै।
सुरभी भछन करत वेद मुख, घन बरसै तन छीजै।।
त्रिकुटी कुण्डल मध्ये मंदिल बाजै, औघट अम्मर छीजै।
पुहुमी का पनियां अम्मर भरिया, ई अचरज कोई बूझै।
कहैं कबीर सुनो हो सन्तो, जोगिनि सिधि पिआरी।
सदा रहे सुख संजम अपने, बसुधा आदि कुवारी।।

सबद-83

जिह्वा स्वाद प्रकरण

भूला वे अहमक नादाना, जिन्ह हरदम रामहिं ना जाना।।
बरबस आनि के गाइ पछारिन, गरा काटि जिउ आपु लिया।
जीअत जीउ मुरदा करि डारा, तिसको कहत हलाल हुआ।।
जाहि मांसु को पाक कहतु हौ, ताकी उतपति सुनु भाई।
रज बीरज से मांस उपानी, सो मांसु नपाकी तुम खाई।।
अपनी देखि करत नहि अहमक, कहत हमारो बड़न किया।
उसकी खून तुम्हारी गरदन, जिन्ह तुमको उपदेस दिया।।
सिआही गई सफेदी आई, दिल सफेद अजहूँ न हुआ।
रोजा बंग नेमाज का कीजै, हुजरे भीतर पैठि मुआ।।
पंडित वेद पुरान पढ़ै सभ, मुसलमान कोराना।
कहैं कबीर दोउ पड़े नरक में, जिन्ह हरदम रामहिं ना जाना।।

सबद-84

इस्लाम मत समीक्षा प्रकरण

काजी तुम कउन कितेब बखानी।
झंखत बकत रहहु निसिवासर, मति एकउ नहिं जानी।।
सकति अनुमाने सुनति करतु हों, मैं ना बदोंगा भाई।
जउ खोदाय तेरी सुनति करतु है, तौ आपहिं काटि क्यों न आई।।
सुनति कराइ तुरक जउ होना, अउरत को का कहिये।
अरध सरीरी नारि बखानी, ताते हिन्दू रहिये।।
पहिरि जनेउ जउ बांभन होना, मेहरिहिं का पहिराया।
वो जनम की सूद्रिनि परसे, तुम पांड़े क्यों खाया।।
हिन्दू तुरक कहां ते आया, किन यह राह चलाया।
दिल मैं खोजि देखु खोजादे, भिस्त कहाँ ते आयी।।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, जोर करतु हे भाई।
कबीर न ओट राम की पकरी, अंति चले पछिताई।।


सबद-85

परिग्रह निषेध प्रकरण

भूला लोग कहै घर मेरा।
जे घरवा में भूला डोले, सो घर नाहीं तेरा।।
हाथी घोड़ा बैल बाहन, संग्रह कियो घनेरा।
बस्ती मां से दियो खदेरा, जंगल कियो बसेरा।।
गांठी बांधि खरच नहिं पठयो, बहुरि न कीन्हों फेरा।
बीबी बाहर हरम महल में, बीच मियां को डेरा।।
नउ मन सूत अरुझि नहिं सुरझा, जनम-जनम उरझेला।
कहैं कबीर सुनो भाई सन्तों, पद का करहु निबेरा।।

सबद-86

हठवादी प्रकरण

कबिरा तेरो घर कंदला में, यह जग रहत भुलाना।
गुर की कही करत नहिं कोई, अमहल महल देवाना।।
सकल ब्रह्म मों हंस कबीरा, कागन चोंच पसारा।
मनमथ करम धरै सभ देही, नाद विंद वेसतारा।।
सकल कबीरा बोलै बानी, पानी में घर छाया।
अनंत लूट होत घट भीतर, घट का मरम न पाया।।
कामिनि रूपी सकल कबीरा, म्रिगा चरिन्दा होई।
बड़-बड़ ग्यानी मुनिवर थाके, पकरि सकै नहिं कोई।।
ब्रहा्रा वरुन कुवेर पुरिंदर, पीपा अउ पहलादा।
हरनाकुस नख वोद्र बिदारा, तिनहुं को काल न राखा।।
गोरख ऐसो दत्त दिगंबर, नामदेउ जैदेउ दासा।
तिनकी खबर कहत नहिं कोई, कहां कियो हैं बासा।।
चउपर खेल होत घट भीतर, जन्म का पासा डारा।
दम-दम की कोई खबरि न जाने, करि न सकै निरुवारा।।
चारि द्रिग महि मंडल रचो है, रूम साम बिच डिल्ली।
तेहि ऊपर किछु अजब तमासा, मारो हैं जम किल्ली।।
सकल अवतार जाके महि मंडल, अनंत खड़ा कर जोरै।
अद्बुद अगम औगाह रच्यो है, ई सभ सोभा तेरे।।
सकल कबीरा बोलै बीरा, अजहूँ हो हुसियारा।
कहैं कबीर गुर सिकली दरपन, हरदम करहु पुकारा।।


सबद-87

हठयोग साधना प्रकरण

कबिरा तेरो बन कंदला में, मानु अहेरा खेलै।
बफुवारी आनंगु म्रिगा, रुची-रुची सर मेलै।।
चेतन रावल पावल खेड़ा, सहजै मूल बांधै।
ध्यान धनुस ग्यान बान, जोगी सर साधै।।
खट चक्र बधि कौल बेधि, जाय उजिआरी कीन्हा।
काम क्रोध लोभ मोह, हांकि साउज दीन्हा।।
गगन मध्ये रोकिन द्वारा, जहाँ दिवस नहिं राती।
दास कबीरा जाय पहुंचे, बिछुरे संगी साथी।।

सबद-88

जीवात्मा विशेष प्रकरण

साउज न होय भाई साउज न होई, बाकी मांसु भखै सभ कोई।
साउज एक सकल संसारा, अविगति वाकी बाता।।
पेट फारि जो देखिय रे भाई, आहि करेज न आँता।
ऐसी वाकी मांसु रे भाई, पल-पल मांसु बिकाई।।
हाड़ गोड़ ले घूर पवारिनि, आगि धुवां नहिं खाई।
सीर सिंगी किछुवोनहिं वाके, पूछ कहाँ वै पावै।।
सब पंडित मिलि धन्धे परिया, कबिरा बनौरी गावै।

सबद-89

मानव शरीर अनित्य प्रकरण

सुभागे केहि कारण लोभ लागे, रतन जनम खोयो।
पूरब जनम भूमि कारन, बीज काहे को बोयो।।
बुन्द से जिन्ह पिंड संजोयो, अगिनी कुंड रहाया।
जब दस मास मातु के गरभे, बहुरिहिं लागलि माया।।
बारहु ते फुनि ब्रिद्वा हुआ, होनहार सो हूवा।
जब जम ऐहैं बांधि चलइहैं, नैन भरि-भरि रोया।।
जीवन की जनि आसा राखो, काल धरे हैं सांसा।
बाजी है संसार कबीरा, चित चेति डारो पासा।।

सबद-90

शास्त्र ईश्वर भजन प्रकरण

संत महंतो सुमिरो सोई, जो काल फांस ते बांचा होई।।
दत्तात्रेय मरम नहिं जाना, मिथ्या साधि भुलाना।
सलिल मथि घ्रित कै काढि़न, ताहि समाधि समाना।।
गोरख पौन राखि नहिं जाना, जोग जुग्ति अनुमाना।
रिधि सिधि संजम बहुतेरा, पारब्रह्म नहिं जाना।।
वसिस्ट सिस्ट विद्या सम्पूरन, राम ऐसो सिस साखा।
जाहि राम को करता कहिये, तिनहुं  को काल न राखा।।
हिन्दू कहैं हमहिं ले जारों, तुरक कहैं हमारो पीर।
दोऊ आय दीन में झगरैं, ठाढे़ देखैं हंस कबीर।।


सबद-91

व्यापक दुःख प्रकरण

तन धरि सुखिया काहु न देखा, जो देखा सो दुखिया।
उदै अस्त की बात कहत हों, सबका किया विवेका।।
बाटे-बाटे सब कोइ दुखिया, का गिरिही बैरागी।
सुखाचार्ज दुःख ही के कारन, गर्भहिं माया त्यागी।।
जोगी जंगम ते अति दुखिया, तापस के दुःख दूना।
आसा त्रिस्ना सब घट व्यापे, कोइ महल नहिं सूना।।
सांच कहौ तो जग खीझै, झूठ कहा नहिं जाई।
कहैं कबीर तेई भौ दुखिया, जिन्ह यह राह चलाई।।


सबद-92

मन प्राबल्य प्रकरण

ता मन को चीन्हों मोरे भाई, तन छूटे मन कहाँ समाई।
सनक सनन्दन जैदेव नामा, भगति हेतु मन उनहुं न जान।।
अम्बरीख पहलाद सुदामा, भगति सही मन उनहुं न जाना।
भरथरि गोरख गोपीचन्दा, ता मन मिलि-मिलि कियो अनंदा।।
जा मन को कोई जानु न भेवा, ता मन मगन भये सुखदेवा।
सिउ सनकादिक नारद सेखा, तन के भीतर मन उनहुं न पेखा।।
ये कल निरंजन सकल सरीरा, ता मह भरमि रहल कबीरा।

सबद-93

वंचक प्रकरण

बाबू ऐसो है संसार तिहारो, इहै कली वेवहारो।
को अब अनुख सहै प्रतिदिन को, नाहि न रहनि हमारो।।
सुम्रिति सोहाय सभै कोई जानै, ह्रदया तत्व नर बूझै।
निरजिउ आगे सरजिउ थापै, लोचन किछउ न सूझै।।
तजि अम्रित विख काहे को अंचवै, गांठी बांधिनि खोटा।
चोरन दीन्हा पाट सिंघासन, साहुन से भौ ओटा।।
कहैं कबीर झूठे मिलि झूठा, ठगही ठग वेवहारा।
तीनि लोक भरपूरि रहा है, नाहीं है पतियारा।।


सबद-94

निर्गुण ईश्वर  प्रकरण

कहु हो निरंजन कउने बानी।
हाथ पाउ मुख स्त्रवन जिभ्या नहिं, का कहि जपहु हो प्रानी।।
जाकतिहिं जोति-जोति जउ कहिये, जोति कवन सहिदानी।
जोतिहिं जोति-जोति दै मारै, तब कहाँ  जाकति समानी।।
चारि बेद ब्रह्मा जउ कहिया, उनहुं न या गति जानी।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, बूझो पंडित ग्यानी।।


सबद-95

अन्योक्ति वंचक प्रकरण

को अस करे नगर कोटवलिया, मांसु फैलाय गीध रखवरिया।
मूस भौ नाउ मंजार कडिहरिया, सोवे दादुर सरप पहरिया।।
बैल बियाय गाय भइ बंझा, बछरू दुहिये तिनि-तिनि संझा  |
नित उठि सिंघ स्यार सों जूझै, कबीर का पद जन बिरला बूझै।।


सबद-96

पश्चाताप  प्रकरण

काको रोऊँ गैल बहुतेरा, बहुतक मुअल फिरल नहिं फेरा।
जब हम रोया तब तुम न संभारा, गरभ बास की बात विचारा।।
अब तैं रोया का तैं पाया, केहि कारण अब मोहि रोवाया।
कहैं कबीर सुनो संतो भाई, काल के वसी परो मति कोई।।


सबद-97

कपट प्रकरण

अल्लह राम जीयो तेरि नांई, जिन पर मेहर होहु तुम सांई।
का मूंडी भूई सिर नाये, का जल देह नहाये।।
खून करे मिस्कीन कहाये, अवगुन रहे छिपाये।
का उज्जू जप मज्जन किये, का महजिद सिर नाये।।
ह्रिदया कपट निमाज गुजारै, का हज मक्के जाये।
हिन्दू बरत एकादसि चउबिसो, तीस रोजा मुसलमाना।।
ग्यारह मास कहो किन टारे, एक महिना आना।
जउ खोदाय महजीद बसतु है, अउर मुलुक केहि केरा।।
तीरथ मूरत में राम निवासी, दुई मा किनहूँ न हेरा।
पूरब दिसा हरि को बासा, पच्छिम अल्लह मुकामा।।
दिल मा खोजु दिलहिं मां खोजो, इहैं करीमा रामा।
बेद कितेब कहो किन झूठा, झूठा जो न विचारे।।
सभ घट एक-एक के लेखे, भै दूजा के मारे।
जेते औरत मरद उपाने, सो सभ रूप तुम्हारा।।
कबीर पोंगरा अल्लह राम का, सो गुर पीर हमारा।

सबद-98

सर्वधर्म परित्याग भजन प्रकरण

आव बे आव मुझे हरि को नाम, अउर सकल तजु कवने काम।
कहं तब आदम कहं तब हौवा, कहं तब पीर पैगम्बर हूवा।।
कहं तब जिमी कहाँ  असमान, कहं तब बेद कितेब कोरान।
जिन दुनिया में रची मसीद, झूठा रोजा झूठी ईद।।
सांचा एक अलह को नाम, जाको नई-नई करहु सलाम।
कहु दहु भिस्त ते आई, किसके कहे तुम छुरी चलाई।।
करता किरतम बाजी लाई, हिन्दू तुरक की राह चलाई।
कहं तब दिवस कहां तब राती, कहाँ तब किरतम किन उत्पाती।।
नहिं वाके जाति नहीं वाके पांती, कहैं कबीर वाके दिवस न राती।


सबद-99

शरीर अनित्यता प्रकरण

अब कहां चलेहु अकेले मीता, उठहु न करहु धरहुं की चिन्ता।
खीर खांड घ्रित पिंड संवारा, सो तन लै बाहिर कै डारा।।
जेहि सिर रचि-रचि बाधेहु पागा, सो तन रतन बिडारत कागा।
हाड़ जरै जस जंगल लकरी, केस जरै जस घास की पूली।।
आवत संग न जात संघाती, काह भये दल बाधल हाथी।
माया के रस लेन न पाया, अंतर जम बिलारि होय धाया।।
कहैं कबीर नर अजहुं  न जागा, जम का मुगदर मांझ सिर लागा।


सबद-100

अन्योक्ति भ्रम प्रकरण

देखहु लोग हरिकेर सगाई, माय धरै पूत धियउ संग जाई।
सासु ननद मिलि अचल चलाई, मंदरिया ग्रिह बेटी जाई।।
हम बहनोई राम मोर सारा, हमहिं बाप हरि पूत्र हमारा।
कहैं कबीर ये हरि के बूता, राम रमै ते कुकरी के पूता।।

सबद-101

योगि का विस्मय प्रकरण

देखि-देखि जिय अचरज होई, यह पद बूझै बिरला कोई।
धरती उलटि अकासय जाय, चिउंटी के मुख हस्ती समाय।।
बिना पौन सौं परबत उड़ै, जीउ जंतु सभ बृक्षा चढ़ै।
सूखे सरवर उठै हिलोरा, बिनु जल चकवा करत किलोरा।।
बैठा पण्डित पढै़ पुरान, बिनु देखे का करत बखान।
कहैं कबीर यह पद को जान, सोई संत सदा परमान।।

सबद-102

सद्विचार विमर्श प्रकरण

हो दारी के ले देऊँ तोहिं गारी, तै समुझ सुपंथ बिचारी।
घरहुं  के नाह जो अपना, तिनहुं से भेंट न सपना।।
बाह्मन  छत्री बानी, तिनहुं  कहल नहिं मानी।
जेगी जंगम जेते, आपु गहे हैं तेते।।
कहैं कबीर एक जोगी, वो तो भरमि-भरमि भौ भोगीं।।


सबद-103

भक्ति भावनात्मक आत्मज्ञान प्रकरण

लोगा तुमहीं मति के भोरा।
ज्यों पानी-पानी मिलि गयऊ, त्यों धुरि मिला कबीरा।
जो मिथिला को सांचा व्यास, तोहरो मरन होय मगहर पास।।
मगहर मरै मरन नहिं पावै, अंतै मरै तौ राम लजावै।
मगहर मरै सो गदहा होय, भल परतीत राम सों खोय।।
का कासी का मगहर ऊसर, जौ पै ह्रिदय राम बसे मोरा।
जौ कासी तन तजै कबीरा, तौ रामहिं कवन निहोरा।।

सबद-104

पाखण्ड प्रकरण

कैसे तरो नाथ केसे तरो, अब बहु कुटिल भरो।
कैसी तेरी सेवा पूजा, कैसो तेरो ध्यान।।
ऊपर उजल देखो, बग अनुमान।
भाउ तो भोवंग देखो, अति बेविचारी।।
सुरत सचान तेरी, मति तो मंजारी।
अति रे विरोधी देखो, अति रे सेआना।।
छव दरसन देखो, भेख लपटाना।
कहैं कबीर सुनो नर बंदा, डाइन डिंभ सकल जग खंदा।।


सबद-105

भ्रमभूत प्रकरण

यह भ्रम भूत सकल जग खाया, जिन-जिन पूजा तिन जहंराया।
अंड न पिंड न प्रान न देही, कटि-कटि जिउ कउतुक देही।।
बकरी मुरगी कीन्हेउ छेवा, आगिल जनम उन अउसर लेवा।
कहैं कबीर सुनो नर लोई, भुतवा के पुजले भुतवा होई।।


सबद-106

जरा अवस्था दुर्गति प्रकरण

भंवर उड़े बग बैठे आय, रैनि गई दिवसो चलि जाय।
हल-हल कापै बाला जीऊ, ना जानूं का करिहैं पीऊ।।
कांचै वासन टिकै न पानी, उडि़ गये हंस काया कुभिलानी।
काग उड़ावत भुजा पिरानी, कहैं कबीर यह कथा सिरानी।।


सबद-107

भजन बिना दुर्दषा प्रकरण

खसम बिनु तेली को बैल भयो।
बैठत नांहि साधु की संगति, नाचे जमन गयो।।
बहि-बहि मरहु पचहु निज स्वारथ, जम को दंड सहाो।
धन दारा सुत राज काज हित, माथे भार गह्राो।।
खसमहिं छाडि़ विखै रंग रात्यो, पाप के बीज बोयो।
झूठि मुकुति नर आस जीवन की, परेत के जूठ खयो।।
लख चैरासी जीउ जंतु में, सायर जात बहा्रो।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, स्वान के पूछ गहा्रो।।


सबद-108

हरि विछोह प्रकरण

अब हम भैलि बहुरि जल मीना, पूर्व जनम तप का मद कीना।
ताहिया मैं अछलौं मन वैरागी, तजलौं मैं लोग कुटुम राम लागी।।
तजलेउ मैं कासी मति भइ भोरी, प्राननाथ कहु का गति मोरी।
हमहिं कुसेवक कि तुमहिं अयाना, दुइमा दोस काहि भगवाना।।
हम चलि अइली तोहरे सरना, कतहूँ  न देखौं हरि जी के चरना।
हम चलि अइली तोहरे पासा, दास कबीर भल कैल निरासा।।


सबद-109

हरि विछोह प्रकरण

लोग बोलैं दुरि गये कबीर, ये मत कोई-कोई जानैगा धीर।
दसरथ सुत तिहुं लोकहिं जाना, राम नाम का मरम है आना।।
जेहि जिउ जानि परा जस लेखा, रजु का कहै उरग सम पेखा।।
जद्दपि फर उत्तिम गुन जाना, हरि छोडि़मन मुकुति न माना।।
हरि अधार जस मीनहिं नीरा, अउर जतन किछु कहै कबीरा।।

सबद-110

प्रारब्ध प्रावल्य प्रकरण

आपन करम न मेटो जाई।
करमक लिखल मिटै धौर कैसे, जो जुग कोटि सिराई।।
गुरु बसिष्ठ मिलि लगन सोधाये, सूर्ज मंत्र एक दीन्हा।
जो सीता रधुनाथ बियाही, पल एक संचु न कीन्हा।।
तीनि लोक के करता कहिये, बालि बधो बरिआई।
एक समै ऐसी बनि आई, उनहु औसर पाई।।
नारद मुनि को बदन छिपायो, कीन्हों कपि को सरुपा।
सिसुपाल की भुजा उपारिन, आप भयो हरि ठूँठ ।।
पारबती को बांझ न कहिये, ईष्वर न कहिये भिखारी।
कहैं कबीर करता की बातें, करम की बात निनारी।।

सबद-111

अन्योक्ति जीव माया प्रकरण

है कोई गुरु ग्यानी, जगत उलटि बेदहिं बूझै।
पानी में पावक बरै, अंधेहिं आंखि न सूझै।।
गाइ तो नाहर खायो, हरिन खायो चीता।
काग लंगर फांदि के, बटेर बाजहिं जीता।।
मूस तो मंजार खायो, स्यार खायो स्वाना।
आदि को उपदेष जाने, तासु बेस बाना।।
एकहिं दादुल खायो, पांचहिं भुवंगा।
कहैं कबीर पुकारि के, हैं दोऊ एक संगा।।

सबद-112

भक्त भगवद् पहिचान प्रकरण

झगड़ा एक बढ़ो राजा राम, जो निरवारै सो निरवान।
ब्रम्ह बड़ा कि जहां से आया, वेद बड़ा की जिन्ह उपजाया।।
ई मन बड़ा कि जेहि मन माना, राम बड़ा कि रामहिं जाना।
भूमि-भूमि कबीरा फिरत उदास, तीरथ बड़ा की तीरथ के दास।।


सबद-114

सावधान प्रकरण

सत्पुरुष के द्वारा सृष्टि विकास प्रकरण
सत्त सबद से बांचिहो, मानहु इतवारा हो।
अछै मूल सत पुरस है, निरंजन डारा हो।।
तिरदेवा साखा भये, पत्ती संसारा हो।
ब्रहा्रा वेद सही कियो, सिउ जोग पसारा हो।।
बेस्नु माया उत्पति कियो, ई उरले वेवहारा हो।
तीन लोक दसहू दिसा, जम रोकिन द्वारा हो।।
कीर भये सब जीअरा, लिये विख का चारा हो।
जोति सरूपी हाकिमा, जिन्ह अमल पसारा हो।।
करम की बंसी लाय के, पकरो जग सारा हो।
अमल मिटावों तासु की, पठवौं भौ पारा हो।।
कहैं कबीर निरभै करौ, परखो अकसारा हो।


सबद-113

सावधान प्रकरण

झूठेहिं जनि पतियाहु हो, सुनु सन्त सुजाना।
तेरे घटहीं में ठगपूर है, मति खोवहु अपाना।।
झूठे की मंडान है, धरती असमाना।
दसहुं दिसा वाकि फंद है, जिव घेरे आना।
जोग जप-तप संजमा, तीरथ ब्रत दाना।
नौधा बेद कितेब है, झूठे का बाना।।
काहू के वचनहिं फुरे, काहू करामाती।
मान बड़ाई ले रहे हैं हिन्दू तुरक जाती।।
बात वेंवते असमान की, मुद्दति निअरानी।
बहुत खुदी दिल राखते, बूड़े बिनु पानी।।
कहैं कबीर कासो कहौं, सकलो जग अंधा।
सांचे से भागा फिरै, झूठे का बन्दा।।


सबद-115
जीव मूल प्रकरण

सन्तो ऐसी भूल जग माहीं, जाते जिउ मिथ्या में जाहीं।।
पहिले भूले ब्रहा्र अखंडित, झाई आपुहिं मानी।
झाई में भूलत इच्छा कीन्हीं, इच्छा ते अभिमानी।।
अभिमानी करता होय बैठे, नाना पन्थ चलाया।
वोहि भूल मैं सभ जग भूला, भूल का मरम न पाया।।
लख चउरासी भूल ते कहिये, भूलये जग बिटमाया।
जो है सनातन सोई भूला, अब सो भूलहिं खाया।।
भूल मिटै गुरु मिलै पारखी, पारख देहि लखाई।
कहैं कबीर भूल की वोखद, पारख सभकी भाई।।