सबद-73
आसुरीभाव प्रकरण
आसुरीभाव प्रकरण
फिरहु का फूले फूले फूले।
जब दस मास ऊर्ध मुख होते, सो दिन काहे के भूले।।
जो मांखी सहते नहिं बिहुरे, सोचि-सोचि धन कीन्हा।
मूये पीछे लेहु-लेहु करे सभ, भूत रहनि कस दीन्हा।।
देहरि लौं बर नारि संग है, आगे संग सुहेला।
म्रितक थान लौ संग खटोला, फिर पुनि हंस अकेला।।
जारे देह भसम होइ जाई, गाड़े माटी खाई।।
कांचे कुंभ उदक ज्यों भरिया, तन की इहै बड़ाई।।
राम न रमसि मोह के माते, परेहु काल बस कूँवा ।
कहैं कबीर नर आपु बंधायो, ज्यों नलनी भ्रम सूँवा।।