Kabir ke sabad
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सबद-95
अन्योक्ति वंचक प्रकरण
को अस करे नगर कोटवलिया, मांसु फैलाय गीध रखवरिया।
मूस भौ नाउ मंजार कडिहरिया, सोवे दादुर सरप पहरिया।।
बैल बियाय गाय भइ बंझा, बछरू दुहिये तिनि-तिनि संझा |
नित उठि सिंघ स्यार सों जूझै, कबीर का पद जन बिरला बूझै।।
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