सबद-110
प्रारब्ध प्रावल्य प्रकरण
आपन करम न मेटो जाई।
करमक लिखल मिटै धौर कैसे, जो जुग कोटि सिराई।।
गुरु बसिष्ठ मिलि लगन सोधाये, सूर्ज मंत्र एक दीन्हा।
जो सीता रधुनाथ बियाही, पल एक संचु न कीन्हा।।
तीनि लोक के करता कहिये, बालि बधो बरिआई।
एक समै ऐसी बनि आई, उनहु औसर पाई।।
नारद मुनि को बदन छिपायो, कीन्हों कपि को सरुपा।
सिसुपाल की भुजा उपारिन, आप भयो हरि ठूँठ ।।
पारबती को बांझ न कहिये, ईष्वर न कहिये भिखारी।
कहैं कबीर करता की बातें, करम की बात निनारी।।
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