सबद-107
भजन बिना दुर्दषा प्रकरण
खसम बिनु तेली को बैल भयो।
बैठत नांहि साधु की संगति, नाचे जमन गयो।।
बहि-बहि मरहु पचहु निज स्वारथ, जम को दंड सहाो।
धन दारा सुत राज काज हित, माथे भार गह्राो।।
खसमहिं छाडि़ विखै रंग रात्यो, पाप के बीज बोयो।
झूठि मुकुति नर आस जीवन की, परेत के जूठ खयो।।
लख चैरासी जीउ जंतु में, सायर जात बहा्रो।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, स्वान के पूछ गहा्रो।।
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