सबद-101
योगि का विस्मय प्रकरण
देखि-देखि जिय अचरज होई, यह पद बूझै बिरला कोई।
धरती उलटि अकासय जाय, चिउंटी के मुख हस्ती समाय।।
बिना पौन सौं परबत उड़ै, जीउ जंतु सभ बृक्षा चढ़ै।
सूखे सरवर उठै हिलोरा, बिनु जल चकवा करत किलोरा।।
बैठा पण्डित पढै़ पुरान, बिनु देखे का करत बखान।
कहैं कबीर यह पद को जान, सोई संत सदा परमान।।
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