सबद-109
हरि विछोह प्रकरण
लोग बोलैं दुरि गये कबीर, ये मत कोई-कोई जानैगा धीर।
दसरथ सुत तिहुं लोकहिं जाना, राम नाम का मरम है आना।।
जेहि जिउ जानि परा जस लेखा, रजु का कहै उरग सम पेखा।।
जद्दपि फर उत्तिम गुन जाना, हरि छोडि़मन मुकुति न माना।।
हरि अधार जस मीनहिं नीरा, अउर जतन किछु कहै कबीरा।।
No comments:
Post a Comment