Kabir ke sabad
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सबद-96
पश्चाताप प्रकरण
काको रोऊँ गैल बहुतेरा, बहुतक मुअल फिरल नहिं फेरा।
जब हम रोया तब तुम न संभारा, गरभ बास की बात विचारा।।
अब तैं रोया का तैं पाया, केहि कारण अब मोहि रोवाया।
कहैं कबीर सुनो संतो भाई, काल के वसी परो मति कोई।।
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