सबद-92

मन प्राबल्य प्रकरण

ता मन को चीन्हों मोरे भाई, तन छूटे मन कहाँ समाई।
सनक सनन्दन जैदेव नामा, भगति हेतु मन उनहुं न जान।।
अम्बरीख पहलाद सुदामा, भगति सही मन उनहुं न जाना।
भरथरि गोरख गोपीचन्दा, ता मन मिलि-मिलि कियो अनंदा।।
जा मन को कोई जानु न भेवा, ता मन मगन भये सुखदेवा।
सिउ सनकादिक नारद सेखा, तन के भीतर मन उनहुं न पेखा।।
ये कल निरंजन सकल सरीरा, ता मह भरमि रहल कबीरा।

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