सबद-111
अन्योक्ति जीव माया प्रकरण
है कोई गुरु ग्यानी, जगत उलटि बेदहिं बूझै।
पानी में पावक बरै, अंधेहिं आंखि न सूझै।।
गाइ तो नाहर खायो, हरिन खायो चीता।
काग लंगर फांदि के, बटेर बाजहिं जीता।।
मूस तो मंजार खायो, स्यार खायो स्वाना।
आदि को उपदेष जाने, तासु बेस बाना।।
एकहिं दादुल खायो, पांचहिं भुवंगा।
कहैं कबीर पुकारि के, हैं दोऊ एक संगा।।
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