Kabir ke sabad
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सबद-105
भ्रमभूत प्रकरण
यह भ्रम भूत सकल जग खाया, जिन-जिन पूजा तिन जहंराया।
अंड न पिंड न प्रान न देही, कटि-कटि जिउ कउतुक देही।।
बकरी मुरगी कीन्हेउ छेवा, आगिल जनम उन अउसर लेवा।
कहैं कबीर सुनो नर लोई, भुतवा के पुजले भुतवा होई।।
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