सबद-85
परिग्रह निषेध प्रकरण
भूला लोग कहै घर मेरा।
जे घरवा में भूला डोले, सो घर नाहीं तेरा।।
हाथी घोड़ा बैल बाहन, संग्रह कियो घनेरा।
बस्ती मां से दियो खदेरा, जंगल कियो बसेरा।।
गांठी बांधि खरच नहिं पठयो, बहुरि न कीन्हों फेरा।
बीबी बाहर हरम महल में, बीच मियां को डेरा।।
नउ मन सूत अरुझि नहिं सुरझा, जनम-जनम उरझेला।
कहैं कबीर सुनो भाई सन्तों, पद का करहु निबेरा।।
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