सबद-84
इस्लाम मत समीक्षा प्रकरण
काजी तुम कउन कितेब बखानी।
झंखत बकत रहहु निसिवासर, मति एकउ नहिं जानी।।
सकति अनुमाने सुनति करतु हों, मैं ना बदोंगा भाई।
जउ खोदाय तेरी सुनति करतु है, तौ आपहिं काटि क्यों न आई।।
सुनति कराइ तुरक जउ होना, अउरत को का कहिये।
अरध सरीरी नारि बखानी, ताते हिन्दू रहिये।।
पहिरि जनेउ जउ बांभन होना, मेहरिहिं का पहिराया।
वो जनम की सूद्रिनि परसे, तुम पांड़े क्यों खाया।।
हिन्दू तुरक कहां ते आया, किन यह राह चलाया।
दिल मैं खोजि देखु खोजादे, भिस्त कहाँ ते आयी।।
कहैं कबीर सुनो हो संतो, जोर करतु हे भाई।
कबीर न ओट राम की पकरी, अंति चले पछिताई।।
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