सबद-93

वंचक प्रकरण

बाबू ऐसो है संसार तिहारो, इहै कली वेवहारो।
को अब अनुख सहै प्रतिदिन को, नाहि न रहनि हमारो।।
सुम्रिति सोहाय सभै कोई जानै, ह्रदया तत्व नर बूझै।
निरजिउ आगे सरजिउ थापै, लोचन किछउ न सूझै।।
तजि अम्रित विख काहे को अंचवै, गांठी बांधिनि खोटा।
चोरन दीन्हा पाट सिंघासन, साहुन से भौ ओटा।।
कहैं कबीर झूठे मिलि झूठा, ठगही ठग वेवहारा।
तीनि लोक भरपूरि रहा है, नाहीं है पतियारा।।

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