सबद-97

कपट प्रकरण

अल्लह राम जीयो तेरि नांई, जिन पर मेहर होहु तुम सांई।
का मूंडी भूई सिर नाये, का जल देह नहाये।।
खून करे मिस्कीन कहाये, अवगुन रहे छिपाये।
का उज्जू जप मज्जन किये, का महजिद सिर नाये।।
ह्रिदया कपट निमाज गुजारै, का हज मक्के जाये।
हिन्दू बरत एकादसि चउबिसो, तीस रोजा मुसलमाना।।
ग्यारह मास कहो किन टारे, एक महिना आना।
जउ खोदाय महजीद बसतु है, अउर मुलुक केहि केरा।।
तीरथ मूरत में राम निवासी, दुई मा किनहूँ न हेरा।
पूरब दिसा हरि को बासा, पच्छिम अल्लह मुकामा।।
दिल मा खोजु दिलहिं मां खोजो, इहैं करीमा रामा।
बेद कितेब कहो किन झूठा, झूठा जो न विचारे।।
सभ घट एक-एक के लेखे, भै दूजा के मारे।
जेते औरत मरद उपाने, सो सभ रूप तुम्हारा।।
कबीर पोंगरा अल्लह राम का, सो गुर पीर हमारा।

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