सबद-82
कुण्डलिनी की प्रमुखता प्रकरण
तू यहि विधि समझो लोई, गोरी मुख मंदिल बाजे।।
एक सरगुन खट चक्रहि बेधै, बिना व्रिखव कोल्हू माचै।
ब्रह्महिं पकरि अगिन महं होमै, मच्छ गगन चढि़ गाजै।।
निति अमावस निति ग्रहन होई, राहु ग्रासैं नित दीजै।
सुरभी भछन करत वेद मुख, घन बरसै तन छीजै।।
त्रिकुटी कुण्डल मध्ये मंदिल बाजै, औघट अम्मर छीजै।
पुहुमी का पनियां अम्मर भरिया, ई अचरज कोई बूझै।
कहैं कबीर सुनो हो सन्तो, जोगिनि सिधि पिआरी।
सदा रहे सुख संजम अपने, बसुधा आदि कुवारी।।
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