सबद-83
जिह्वा स्वाद प्रकरण
भूला वे अहमक नादाना, जिन्ह हरदम रामहिं ना जाना।।
बरबस आनि के गाइ पछारिन, गरा काटि जिउ आपु लिया।
जीअत जीउ मुरदा करि डारा, तिसको कहत हलाल हुआ।।
जाहि मांसु को पाक कहतु हौ, ताकी उतपति सुनु भाई।
रज बीरज से मांस उपानी, सो मांसु नपाकी तुम खाई।।
अपनी देखि करत नहि अहमक, कहत हमारो बड़न किया।
उसकी खून तुम्हारी गरदन, जिन्ह तुमको उपदेस दिया।।
सिआही गई सफेदी आई, दिल सफेद अजहूँ न हुआ।
रोजा बंग नेमाज का कीजै, हुजरे भीतर पैठि मुआ।।
पंडित वेद पुरान पढ़ै सभ, मुसलमान कोराना।
कहैं कबीर दोउ पड़े नरक में, जिन्ह हरदम रामहिं ना जाना।।
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