सबद-76

भ्रमभेद प्रकरण

आपन पौ आपहिं बिसरयो।
जैसे स्वान कांच मन्दिर मा, भरमिति भूंकि मरयो।।
ज्यों केहरि बपु निरखि कूप जल, प्रतिमा देखि परयो।
वैसेहि गज फटिक सिला मो, दसनन आनि अरयो।।
मरकट मूठि स्वाद नहिं बिछुरै, घर-घर रटत फिरो।
कहैं कबीर नलनी के सुगना, तोंहि कवने पकरो।।

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