Kabir ke sabad
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सबद-106
जरा अवस्था दुर्गति प्रकरण
भंवर उड़े बग बैठे आय, रैनि गई दिवसो चलि जाय।
हल-हल कापै बाला जीऊ, ना जानूं का करिहैं पीऊ।।
कांचै वासन टिकै न पानी, उडि़ गये हंस काया कुभिलानी।
काग उड़ावत भुजा पिरानी, कहैं कबीर यह कथा सिरानी।।
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