सबद-102

सद्विचार विमर्श प्रकरण

हो दारी के ले देऊँ तोहिं गारी, तै समुझ सुपंथ बिचारी।
घरहुं  के नाह जो अपना, तिनहुं से भेंट न सपना।।
बाह्मन  छत्री बानी, तिनहुं  कहल नहिं मानी।
जेगी जंगम जेते, आपु गहे हैं तेते।।
कहैं कबीर एक जोगी, वो तो भरमि-भरमि भौ भोगीं।।

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