सबद-108

हरि विछोह प्रकरण

अब हम भैलि बहुरि जल मीना, पूर्व जनम तप का मद कीना।
ताहिया मैं अछलौं मन वैरागी, तजलौं मैं लोग कुटुम राम लागी।।
तजलेउ मैं कासी मति भइ भोरी, प्राननाथ कहु का गति मोरी।
हमहिं कुसेवक कि तुमहिं अयाना, दुइमा दोस काहि भगवाना।।
हम चलि अइली तोहरे सरना, कतहूँ  न देखौं हरि जी के चरना।
हम चलि अइली तोहरे पासा, दास कबीर भल कैल निरासा।।

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