सबद-89
मानव शरीर अनित्य प्रकरण
सुभागे केहि कारण लोभ लागे, रतन जनम खोयो।
पूरब जनम भूमि कारन, बीज काहे को बोयो।।
बुन्द से जिन्ह पिंड संजोयो, अगिनी कुंड रहाया।
जब दस मास मातु के गरभे, बहुरिहिं लागलि माया।।
बारहु ते फुनि ब्रिद्वा हुआ, होनहार सो हूवा।
जब जम ऐहैं बांधि चलइहैं, नैन भरि-भरि रोया।।
जीवन की जनि आसा राखो, काल धरे हैं सांसा।
बाजी है संसार कबीरा, चित चेति डारो पासा।।
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