सबद-115
जीव मूल प्रकरण
सन्तो ऐसी भूल जग माहीं, जाते जिउ मिथ्या में जाहीं।।
पहिले भूले ब्रहा्र अखंडित, झाई आपुहिं मानी।
झाई में भूलत इच्छा कीन्हीं, इच्छा ते अभिमानी।।
अभिमानी करता होय बैठे, नाना पन्थ चलाया।
वोहि भूल मैं सभ जग भूला, भूल का मरम न पाया।।
लख चउरासी भूल ते कहिये, भूलये जग बिटमाया।
जो है सनातन सोई भूला, अब सो भूलहिं खाया।।
भूल मिटै गुरु मिलै पारखी, पारख देहि लखाई।
कहैं कबीर भूल की वोखद, पारख सभकी भाई।।
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