सबद-112
भक्त भगवद् पहिचान प्रकरण
झगड़ा एक बढ़ो राजा राम, जो निरवारै सो निरवान।
ब्रम्ह बड़ा कि जहां से आया, वेद बड़ा की जिन्ह उपजाया।।
ई मन बड़ा कि जेहि मन माना, राम बड़ा कि रामहिं जाना।
भूमि-भूमि कबीरा फिरत उदास, तीरथ बड़ा की तीरथ के दास।।
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