सबद-99

शरीर अनित्यता प्रकरण

अब कहां चलेहु अकेले मीता, उठहु न करहु धरहुं की चिन्ता।
खीर खांड घ्रित पिंड संवारा, सो तन लै बाहिर कै डारा।।
जेहि सिर रचि-रचि बाधेहु पागा, सो तन रतन बिडारत कागा।
हाड़ जरै जस जंगल लकरी, केस जरै जस घास की पूली।।
आवत संग न जात संघाती, काह भये दल बाधल हाथी।
माया के रस लेन न पाया, अंतर जम बिलारि होय धाया।।
कहैं कबीर नर अजहुं  न जागा, जम का मुगदर मांझ सिर लागा।

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